...

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कृतार्थ
एक सपने का उधार है मुझपे
जो हर रात चुकाना पड़ता है
दबती-थकती आंखों को हर रात जगाना पड़ता है
अज्ञात सा पथिक हूँ मैं
अज्ञात सी राहो का
हर त्याग सह के जीवन को
कृतार्थ बनाना पड़ता है
जलती चुभती राहो पे पैरो को चलाना पड़ता है
माँ का आँचल त्याग कर घर को भूलना पड़ता है
एक सपने का उधार है मुझपे
जो हर रात चुकाना पड़ता है।।

© storyteller