...

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तुम

तेरी आँखो ने जो आँसू छिपाये हैं
कल उनको खूब बरसाऊंगा मैं
तेरे बिस्तर की बेचैन सी करवटों में
बनके अकेलापन खूब सताऊँगा मैं
रो रो कर मुझे पुकारोगे तो बहुत
पर कभी नजर नहीं आऊंगा मैं
कोशिश तो थी तेरा ख़याल रखूँ
तेरे साथ रहूँ, तुझे खुश रखूँ,
पर सचमुच बहुत याद आऊंगा मैं
श्रृंखला में मोतियों सा
बांध कर रखा था खुद को
तुम डोर सी टूटी हो
अब बिखर जाऊँगा मैं
सोचा जो था तेरे माथे को
अपने कंधे पर टिकाकर
बांहों में अपनी सुलाऊँगा मैं
तेरे मोबाइल की घंटी में
और मैसेज की धुन में
ढूँढना मुझे बार बार
पर नजर नहीं आउंगा मैं
मुबारक हो तुमको
तुम्हारे अपने और सपने
अभी व्यस्त हो,व्यस्त रहो
पर फुरसत में बहुत रुलाऊँगा मैं...