बे इन्तेहा इश्क
बे इन्तेहा इश्क
बे इन्तेहा इश्क़ की कसक सता रही है
आज फिर उसकी याद आ रही है
उसके हाथो की चाय की चुस्की
मेरी हर सुबह की पहली किरण मुझे जगा रही है
दिलों दिमाग में उसके होने की तलब
शरीर में उसकी बाहों की खुशबू पागल मुझे बना रही है
आंखों की वो चमक, गले को सह लाना, माथे को चूमते हुए उसका पास आना, मन में सेहलाब उठा रही है
मेरा हाथ...
बे इन्तेहा इश्क़ की कसक सता रही है
आज फिर उसकी याद आ रही है
उसके हाथो की चाय की चुस्की
मेरी हर सुबह की पहली किरण मुझे जगा रही है
दिलों दिमाग में उसके होने की तलब
शरीर में उसकी बाहों की खुशबू पागल मुझे बना रही है
आंखों की वो चमक, गले को सह लाना, माथे को चूमते हुए उसका पास आना, मन में सेहलाब उठा रही है
मेरा हाथ...