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बे इन्तेहा इश्क
बे इन्तेहा इश्क

बे इन्तेहा इश्क़ की कसक सता रही है
आज फिर उसकी याद आ रही है

उसके हाथो की चाय की चुस्की
मेरी हर सुबह की पहली किरण मुझे जगा रही है

दिलों दिमाग में उसके होने की तलब
शरीर में उसकी बाहों की खुशबू पागल मुझे बना रही है

आंखों की वो चमक, गले को सह लाना, माथे को चूमते हुए उसका पास आना, मन में सेहलाब उठा रही है

मेरा हाथ पकड़ना, मुझे अपनी बाहों में जकड़ना, कानो में उसकी फुसफुसाहट, दिल मेरा धड़का रही है

उसके लबों की मस्ती, उसके चेहरे की मासूमियत, अल्हड़ सा उसका एहसास
पास होना सीखा रही है

उसके होने का सुरूर, दिमाग से शरीर तक की रूह को खोना, वो हसीं की खनखनाहट, मुझे खिलखिला रही है

उसका आखिर तक साथ होना, प्यार से उसका मुझे सुलाना, हाथों में हाथों को मेरे सहलाना, उसकी याद दिला रही है

उसका पास आ के बाहों में भरना , समेटते हुए बस अपना कहना, मेरा रंग को और खिला रही है

उसकी हर एक चीज, बे इन्तेहा इश्क़ परवान चढ़ा रही है
© firkiwali