ग़ज़ल
ख़ुद अपनी ज़ात से ही हम लिपट के बैठे हैं
तेरे फ़िराक़ में दुनिया से कट के बैठे हैं
यहॉं से अब कहीं भी जाने की सकत ही नहीं
हमारी क़ब्र से वो क्यूँ लिपट के बैठे हैं
हमें तो सिर्फ़ तेरा नाम...
तेरे फ़िराक़ में दुनिया से कट के बैठे हैं
यहॉं से अब कहीं भी जाने की सकत ही नहीं
हमारी क़ब्र से वो क्यूँ लिपट के बैठे हैं
हमें तो सिर्फ़ तेरा नाम...