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अपराध
मन मौन व्रत कर,अपराध करता है
किस भांति देखो,आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता का,प्रहार करता है
हर पल ठगा जाता है,हर पल छला जाता है
फिर भी उसे पाने का,हठ बार बार करता है
मालूम है ना मिल,पाएगा वो कभी मुझे
फ़िर क्यूं उसे ही पाने,की कोशिश तू
बार बार करता है।
© Tinki
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