...

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स्वयं का प्रेमी हू
स्वयं का प्रेमी हू,
सिर्फ अपने से प्रेम करना जानता हू।
दूसरो के प्रेम की मुझे क्या जरूरत?
जो जानते ही नही मेरी अहमियत।

दूसरो का प्रेम तो हालात के मुताबिक बदलता है,
पर मेरा प्रेम मेरे लिए ही उभरता है।
दूसरो का प्रेम तो मात्र एक दिखावा है,
खुद से प्रेम तो प्रेम का पहनावा है।

खुद से प्रेम करना ही सीखो,
किसी से प्रेम पाने की आशा में उन्हे मत देखो।
देखना है तो खुद को देखो,
अपने से प्रेम करना सीखो।
धन्यवाद।
© Mohit