...

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dekha undekha
मैंने सोच को सच होते देखा है
हां,मैंने माहौल बदलते देखा है।।

मैंने आंखों की नमी को
होठो की मुस्कुराहट को
गालों की नरमाहट को
बालों से छुपाते देखा है
मैंने सोच को सच होते देखा है
हां,मैंने माहौल बदलते देखा है।।
मैंने गीत गुनगुनाते
अकेले में मुस्कुराते
किसी से बतियाते
छुपते छुपाते देखा है
मैंने सोच को सच होते देखा है
हां,मैंने माहौल बदलते देखा है।।
मैंने खामोशी को बुलंद होते
संगति को अकेली कहते
झूठ से सच को छुपाते देखा है
मैंने सच को झूठ कहते देखा है
मैंने सोच को सच होते देखा है
हां,मेने माहौल बदलते देखा है।।
© divu