...

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जरूरत
अजब शब्द की गजब चाल है,
पैर पसारे पड़ी हो चाहे
मौके पर तो ये इठलाये
न अहमियत समझे पिन की
ढूंढने पर गुम हो जाये
साधनो की कमी नही पर,
अवसर पर थैली बिक जाये
यूं तो दुनिया करठ भगाये
वक्त आने पर चरन पखारे
कोसा जाये ज्येष्ठ मे भानू
पौष-माघ मे फिर तरसाये
खेल खेल मे जिसे था मारा
वक्त पर वही वक्त हराये
वैसे तो राहो का प्रस्तर ,
कभी कही जीवन भी बचाये
बह रहा जो नीर यह हर पल
प्यास पर न , तो कंठ सुखाये
तुच्छता का लिबास जो पहने
हो जरूरत तो नख भी न पाये
बड़ा दृढ़ी यह,बड़ा सबल है
नोक पर इसके चलता जगत है,
आज हो चाहे गर्दिश मे तारे,
सोम न हो जो नभ चमकाये,
अजब शब्द का गजब तथ्य है।