कांपती है...
पहाड़ नहीं काँपता,
न पेड़, न तराई,
काँपती है ढाल पर के घर से
नीचे झील पर झरी
दिए की लौ...
न पेड़, न तराई,
काँपती है ढाल पर के घर से
नीचे झील पर झरी
दिए की लौ...