...

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एक खिड़की
एक मोड़ पर एक खिड़की दिखती थी
जो मुझे देख कर रोज हस्ती थी

गुज़रू कभी यूही बहाने से
तो मुझे देख कर खुलती थी

कभी सुनी नहीं उसकी आवाज़ मैंने
पर हवा ओ में बस उसकी आहट बेहती थी

अंजान था में उसके चेहरे से
पर वो मेरी परचाई तक पहचान लेती थी

बेखबर थे...