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गणू की ढाल गजानन
अकाल का वर्ष था,एक कुआं खोदा जा रहा था।
कुछ ही गहराई में काला पत्थर लग गया था।
कुदाल काम न आती अब बारूद से तोड़नी चट्टान थी।
चट्टान में छेद कर बारूद को बत्ती से जलाना था।
जलती बत्ती अटक गई, पानी से अब बारूद गीला होना था।
किसी मजदूर को जलती बत्ती को आगे सरकना था।
सभी डर रहे थे मिस्त्री को तो काम कराना ही था।
मिस्त्री ने डांट कर गणू को बत्ती सरकने बोला था।
गणू जवरे महाराज का निष्ठावान भक्त था।
गरीब गणू नीचे उतार बत्ती को आगे सरकाया ही था।
जलती बत्ती बारूद तक पहुँच गयी और गणू अंदर ही था।
एक बारूद फट पड़ी गणू ने तब महाराज से प्रार्थना की थी।
जल्दी आइए गजानन मेरी रक्षा कीजिये दूसरी फूटने को थी।
गणू को एक कपार मिली उसमे छिप बैठा वह था।
कई बारूद फटे धुंए और पत्थरो से कुवां भरा था।
सबने सोचा गणू को मुक्ति मिल गयी टुकड़ो में मिलेगा ।
सबने कुएं में देखा गणू किसी को भी दिखाई नही दिया था।
मैं अंदर कपार में हूँ,गणू ने अंदर से आवाज लगाई थी।
बड़ी सी चट्टान को आकर हटाइये जो बहुत भारी थी।
दस लोगो ने कपार से चट्टान हटाई तब गणू ऊपर आया था।
गणू तुरंत ही गजानन महाराज के दर्शन को गया था।
गण्या कितने पत्थर उड़ाए,चट्टान ने तुझे बचा लिया था।
फिर से ऐसा साहस मत करना,संकट में तेरा जीवन था।
गजानन महाराज ने डांट कर गणू को कहा था।
गणू ने महाराज के चरण छुए,आप न होते तो मैं न होता।
गजाजन की महिमा आपार,चट्टान बन जान बचाने आये।
संजीव बल्लाल २३/३/२०२४© BALLAL S