...

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zindagi
नैन खुले है निंद का ठिकाना नहीं ,
गुम हो गयी है वो हसरते, ढूढता हु यहीं कहीं ,
दिल ने कहा सपने मिलेंगे तुझे वहीं ,
पर मन कहें क्या उधर जाना होगा सही ?
इसी उलझन में जिंदगी है कट रही ,
ढेरो बाते अब भी है अनसुनी अनकही!
© Madhusudan