...

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बिखर के सम्भलना...
बिखर के सम्भलना खूब आता है
इन राहों पे चलना खूब आता है
तेरी रुख़्सती पे और तारीफ़ क्या करूँ
तुझे इश्क़ से निकलना ख़ूब आता है

हम कितने दिन बिसार देतें हैं
तेरी याद में वक़्त गुज़ार देते हैं
तेरी कसमों पर ऐतबार नही रहा
तुझे वादे से मुकरना खूब आता है

मुझसे दूर होके न जाने किधर जाते हो
मुझे रुला के तुम कैसे निखर जाते हो
तेरी मुस्कराहट से ताल्लुक नही रखना अब
मुझे बिगाड़ कर तुम कैसे सुधर जाते हो

© Ish kumar