...

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बस किसी दिन
कितनी बाते कहके भी अनकही रहे गई है तुमसे,
बस कुछ और पल, साथ मिल जाता तुम्हारा,
जब तक तुम नही गए थे,
बस इज़हार, करने के वक्त इंतजार करते रह गए
की शायद मेरी आंखों से तुम मोहब्बत देख लोगे,
की शायद मेरे बिना बात के झगड़ने से, मेरी तुमसे बात करने की कोशिश को जान पाओगे,
पर बुज्दिल तो हम ही थे की कुछ जता ना पाए।
अब अफसोस करने का वक्त रहा नही, जो वक्त बीत गया उन यादों की तरह, तुम्हारी तरह
बस एक चाह है की किसी दिन तुमसे यही, इत्तेफ़ाक से फिरसे मिल जाए।।
- बस किसी दिन

© Feel_through_words