बेटी की गाथा
ना मैं हूँ काज़ल की स्याही,
ना हूँ मैं पापी का दाग,
सूरत से हूं नन्ही तितली,
उड़ जाऊ एक पल में।
एक कोख से मैंने जन्म लिया था,
समुद्र के मोतियों को घूट में पिया था,
सलाह मिली थी बाल्यवस्था से ही,
सवारना है मुझे दूसरे घर की चौखट को।
मृगनयनी मैं, हुयी आश्चर्य,
जहा जन्म लिया,
क्यों ना है मेरा वो घर,
सिसक-सिसकर पूछतीं, परंतु कोई ना दे सटीक उत्तर।
हूं मैं बेटी भोली,
जाना है मुझे पिया के घर,
हो रही हूं...