तन्हाई
अक्सर तन्हाई में,
बातें भी चुप हो जाया करती हैं।
जब मन नहीं होता कुछ सुनने का,
तो रातें भी शोर मचाया करती हैं।।
उजाले कर लेते हैं दुश्मनी ना जाने क्यूँ?
तो अंधेरे को ही गले से लगाया करती हैं।
अश्क बह जाते हैं सारे के सारे,
आंखें सूखी ही अपना ग़म मनाया करती हैं।।
ना याद करना चाहो जिन यादों को,
ना जाने क्यूँ वही बार-बार याद आया करती हैं।
अब तो रहम कर ऐ मेरे ख़ुदा, तू तो मेरा साथ दे
क्योंकि ये तन्हाइयाँ भी अकेले में मुझे सताया करती हैं।।
और जब इनसे ही लगा लो कुछ उम्मीदें,
तो ये भी मुझे धोखा दे जाया करती हैं।।
© Vaishnavi Singh
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