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बचपन
#स्मृति_कविता
पीछे मुड़कर जो देखती हूं तो
अतीत की स्मृतियों में चलता है
चलचित्र की भांति गुजरा ज़माना बचपन का
अभी भी भूले नहीं हैं साथ खेले बचपन के खेल
एक दूसरे के पीछे भागना
और दौड़ के कहना आ छूले
वो खिलौने वो गुडिया गुड़िया का बड़ा होना
फिर गुड़िया की शादी शादी में लड़ना झगड़ना
रुठ कर कुट्टी करना और खुद ही मान जाना
वो सावन की बारिश बारिश की रिमझिम फुहारें
रिमझिम फुहारों में भीगना भीगाना
गीले कपड़ों में घर आना
एक के बाद एक कई झींके लगाना
और मां से डांट खाना फिर
मां की ममता की गर्माई से भरी
अदरक वाली चाय
आज भी याद आती है
उम्र के साथ वो बचपन के दिन कहीं चले गये
मगर आज भी मन में हूक उठती है
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पल छिन
© सरिता अग्रवाल
पीछे मुड़कर जो देखती हूं तो
अतीत की स्मृतियों में चलता है
चलचित्र की भांति गुजरा ज़माना बचपन का
अभी भी भूले नहीं हैं साथ खेले बचपन के खेल
एक दूसरे के पीछे भागना
और दौड़ के कहना आ छूले
वो खिलौने वो गुडिया गुड़िया का बड़ा होना
फिर गुड़िया की शादी शादी में लड़ना झगड़ना
रुठ कर कुट्टी करना और खुद ही मान जाना
वो सावन की बारिश बारिश की रिमझिम फुहारें
रिमझिम फुहारों में भीगना भीगाना
गीले कपड़ों में घर आना
एक के बाद एक कई झींके लगाना
और मां से डांट खाना फिर
मां की ममता की गर्माई से भरी
अदरक वाली चाय
आज भी याद आती है
उम्र के साथ वो बचपन के दिन कहीं चले गये
मगर आज भी मन में हूक उठती है
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पल छिन
© सरिता अग्रवाल
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