परमार्थ ✍️✍️✍️
जिस्म में था कैद जो चोला चला, तुमसे छूटकर
था बहुत ही खूबसूरत ये सफर, उससे रूठकर
खेल ये सारा अधूरा रह गया, जो चाहा उम्रभर
अजनबी था जो चला आखिर गया, तू बैठा बेखबर
सपने सारे बारिशों में बह चले, मिटटी घोलकर
अपनों को तुझसे पराया कर चले, कुछ न बोलकर
तू लगा बैठा था उम्मीदें जहाँ,...
था बहुत ही खूबसूरत ये सफर, उससे रूठकर
खेल ये सारा अधूरा रह गया, जो चाहा उम्रभर
अजनबी था जो चला आखिर गया, तू बैठा बेखबर
सपने सारे बारिशों में बह चले, मिटटी घोलकर
अपनों को तुझसे पराया कर चले, कुछ न बोलकर
तू लगा बैठा था उम्मीदें जहाँ,...