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परमात्मा
ना छल ना माया
नीचे धरती ऊपर आकाश
देख चारों ओर उजियारा छाया
क्या तू क्या तेरी काया
सब में उसका नूर समाया
नाचता तू भी हैं
नाचता मै भी हूँ
ये सारा खेल उसने ही रचाया,
माया भी वह,
धर्म भी वह कर्म भी वह ,
हमें सिर्फ कठपुतली बनाया
ये एक नाटक मंच हैं
जो उसने हमारे लिये सजाया !
पात्र हैं हम और उसने हमें बनाया
ना छल ना माया
नीचे धरती ऊपर आकाश
देख चारों ओर उजियारा छाया !
नीचे धरती ऊपर आकाश
देख चारों ओर उजियारा छाया
क्या तू क्या तेरी काया
सब में उसका नूर समाया
नाचता तू भी हैं
नाचता मै भी हूँ
ये सारा खेल उसने ही रचाया,
माया भी वह,
धर्म भी वह कर्म भी वह ,
हमें सिर्फ कठपुतली बनाया
ये एक नाटक मंच हैं
जो उसने हमारे लिये सजाया !
पात्र हैं हम और उसने हमें बनाया
ना छल ना माया
नीचे धरती ऊपर आकाश
देख चारों ओर उजियारा छाया !
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