...

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सृष्टा

कर दो सुराख
सारी सरहदों में,
जो रुकावट हो
रोशनी को तुम तक आने में..
बना दो
सारी खिड़कियों को दरवाज़े,
जिसकी चाबी हो
सिर्फ तुम्हारे हाथों में..
तोड़कर गिरा दो
हर वो दरो-दीवार,
जो जबरन बांधती हो
तुम्हें दायरों में..

चलो, दौड़ो, उड़ो,
जहां तक चाहो तुम,
पहुंचो हर उस छोर तक
जहां तक कोई
नज़र भी ना जा सके,
क्या चाहिए से लेकर
क्या करना चाहिए
स्वयं निर्धारित करो
स्वयं के लिए..
गर्जना करो
अपनी पूरी शक्ति से
जो गूंज उठे
ये धरती और आकाश..

तुम्हारा अस्तित्व
दुनिया के चंद
मानकों से नियत नहीं..
अपनी नियति की निर्धारक,
स्वयं नियति हो तुम..

इस सृष्टि की
सर्वश्रेष्ठ रचना ही नहीं,
रचनाकार हो,
स्वयं सृष्टा हो तुम...
स्वयं रचो अपनी सृष्टि...।।


© आद्या