खुदा राज़ी लगता है...
मुसाफिर हूं इन सड़कों का,
तलाश मुझे आसमान की...
दिन के उजाले खो चुका कब का,
खोज मुझे रूहानी रोशनी की...
रातों का सुकून तो कभी मिला ही नहीं,
उम्मीद मुझे आएगी निंद,
जैसे माँ...
तलाश मुझे आसमान की...
दिन के उजाले खो चुका कब का,
खोज मुझे रूहानी रोशनी की...
रातों का सुकून तो कभी मिला ही नहीं,
उम्मीद मुझे आएगी निंद,
जैसे माँ...