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ग़ज़ल1
दिल दर्द-ए-मुहब्बत से तेरा मुब्तिला तो हो
मिस्मार तेरे दिल के सुकूँ का किला तो हो
देखी है हमने करके वफ़ा भी ज़माने में
पर कोई वफ़ादारी का अच्छा सिला तो हो
इक रंज मयस्सर हुआ दिल को लगाने से
इसके सिवा भी कुछ कभी हमको मिला तो हो
क्यों कारवाँ ये इश्क़ का थककर है रुक गया
आग़ाज़-ए-मुहब्बत का नया सिलसिला तो हो
आपस में "रिया" राब्ता हरदम बना रहे
शिक़वा हो शिकायत हो कोई भी गिला तो हो
#riyakighazal
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