...

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khamoshi meri...
उगते सूरज के साथ ढल गयी ख़ामोशी मेरी,

ज़िन्दा क्या हुआ इस चेहरों के जंगल में,
चिल्लाते हुए जैसे मर गयी हस्ती मेरी,

मुस्कुराने के लिए अब वजह चाहिए,
कभी बेवजह हँसते रहना...