...

7 views

khamoshi meri...
उगते सूरज के साथ ढल गयी ख़ामोशी मेरी,

ज़िन्दा क्या हुआ इस चेहरों के जंगल में,
चिल्लाते हुए जैसे मर गयी हस्ती मेरी,

मुस्कुराने के लिए अब वजह चाहिए,
कभी बेवजह हँसते रहना थी आदत मेरी,

ठीक हूँ अब उनको भी बताना पड़ता है,
जो नम आँखे देख कर जान जाते थे हालत मेरी,

कुछ अंधेरे सपेरे बन कर आंखे खोल गए,
जब बुरे दौर में टटोली आस्तीने मेरी,

वो जिनके प्यार में चमके थे किस्मत के सितारे,
वही कहते हे "जावेद" बड़ी कमज़ोर हे हाथ की लकीरें तेरी...
© y2j