अपराध
#अपराध
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
मन खुद को विचलित कर हर छण हमें निराश करता है
कभी व्याकुलता तो कभी स्थिरता कर हमें नाच नचाता है
मन हर वक्त हमें कठपुतली बन नचाता है
न जाने कितनों से ये अपराध करता हैं. .
..
© shubhashini singh
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
मन खुद को विचलित कर हर छण हमें निराश करता है
कभी व्याकुलता तो कभी स्थिरता कर हमें नाच नचाता है
मन हर वक्त हमें कठपुतली बन नचाता है
न जाने कितनों से ये अपराध करता हैं. .
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© shubhashini singh