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हसरतें
आंसुओं के साथ आंखों से हसरते निकलती क्यू नही,
एक अनजान कड़ी है जो कभी सुलझती क्यू नही,
सूखे पत्तों से रेशम बनाया है हमने जनाब इस तरह,
टकराई परछाइयां मुद्दत पहले मगर उलझती क्यू नही,
शब ए गम के अंधेरे बड़े घने होते है बादलों की तरह,
है पुरानी ख्वाहिशें जो दिल से देखो मुकरती क्यू नही,
रूह झुलसा बैठे है हम गायबना चिंगारियों से ऐसे ही,
तब से ये सवाल दिल में है के ये संभलती क्यू नही,
वफाए बांटने जाती हो अनापतस्त शहर में बरसो से,
ये आदत बड़ी बुरी है नूर देख ज़रा सुधरती क्यू नही
© Noor_313
एक अनजान कड़ी है जो कभी सुलझती क्यू नही,
सूखे पत्तों से रेशम बनाया है हमने जनाब इस तरह,
टकराई परछाइयां मुद्दत पहले मगर उलझती क्यू नही,
शब ए गम के अंधेरे बड़े घने होते है बादलों की तरह,
है पुरानी ख्वाहिशें जो दिल से देखो मुकरती क्यू नही,
रूह झुलसा बैठे है हम गायबना चिंगारियों से ऐसे ही,
तब से ये सवाल दिल में है के ये संभलती क्यू नही,
वफाए बांटने जाती हो अनापतस्त शहर में बरसो से,
ये आदत बड़ी बुरी है नूर देख ज़रा सुधरती क्यू नही
© Noor_313
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