...

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माँ
प्यार से खाने की थाली मेरे लिये सजाती है,
हमेशा पहला निवाला खुद से पहले मुझे खिलाती है,
जब भी मैं बीमार होता हूँ तो पूरी रात जागती है तू,
बचपन तो बचपन, आज तक फिक़्र में मेरे पीछे भागती है तू,
इसे तेरा एहसान कहूँ या अपना सौभाग्य समझ नहीं आता,
पर तेरे सिवाय मुझे कोई समझ नहीं पाता!

आज भी याद है तेरी मार और सर पर फेरा गया तेरा हाथ माँ,
जब सब छोड़ चुके थे तब था तेरा साथ माँ,
तेरे लिये जान दे देना मेरे लिये कोई बड़ी बात नहीं है,
तसल्ली होगी कि जिसने सांसें दी उसी के लिये सांसें थमी हैं!

मैं नहीं जानता मैं अच्छा बेटा हूँ या नहीं,
एक बात है दिल में, कहूँ या नहीं?
चलो आज दिल खोल ही देता हूँ,
जो दिल में है वो बोल ही देता हूँ!

एक बात है जिससे मैं अक्सर डरता हूँ,
तू साथ नहीं होगी यही सोचकर हर पल मरता हूँ,
और यूं तो कुछ नहीं मांगता...