...

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हम।
क्या हो?के किसी रोज़ गर मर जाए हम!
यह एक हुनर अपने आप में कर जाए हम।

रास्तें अनजान हैं,समंदर अजनबी है सारे,
गर मिल जाए मंज़िल तो अपने घर जाए हम।

क्यूं किसीके आने का इंतज़ार,क्यूं कोई याद?
अच्छा हो गर अपने आप में संवर जाए हम।

नहीं रखना मुझे अब किसी से कोई भी गिला,
शराब की तरह एक सुबह ज़हन से उतर जाए हम।

खाली खाली हैं जज़्बात मेरे,दिल ए मकान,
तेरी मुहब्बत ए गजलों,शायरी से भर जाए हम।

कुछ तो बता!कैसे करें तुझे पाने की कोशिश?
जज़्बात,ज़ुबान सब खो बैठे अब क्या मर जाए हम?

© वि.र.तारकर.