...

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मैं नहीं बदली..!!
किसी के लिए सही,तो किसी के लिए गलत निकली मैं,
लेकिन हां जितना मैंने सोचा था उतनी तो सही निकली मैं।

किसी का सच भी झूठ है और कोई झूठ बेच रहा सच के नाम से,
लोग तुमसे मिलते हैं तुम्हारे बनकर लेकिन अपने काम से।

तुम्हें भी फर्क नहीं पड़ना चाहिए किसी के अधूरे,झूठे सच से,
किसी दिन पूरा होगा खाता उनका,फिर वो कहां जाएंगे सजा से बच के।

सबको मिलता है उनके कर्मों का फल,आज़ नहीं तो कल,
परमात्मा भी करता है सहायता,देता है खुश होने का पल।

ये दुनिया है,यहां सब अपने संस्कारों के अनुसार चलते हैं।
बुरा क्यों मानना,खुद को देख लो,लोग अपने स्वार्थ से मिलते हैं।

हो सके तो ख़ुद को ख़ुद में ढूंढों कुछ बेहतर मिलेगा तुम्हें,
जो करेगा रौशनी सफ़र और वही सुकून-ए-जिन्दगी लगेगा तुम्हें।

आखिर देखो जो कहा था वही हुआ,अंत तक नहीं बदली मैं।
किसी ने कहा मोहब्बत मुझे,किसी ने कहा मोहब्बत में पगली मैं।

आकांक्षा मगन "सरस्वती"

© आकांक्षा मगन "सरस्वती"