...

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सुरमई शाम
न जाने किसे बुलाये?
सुरमई शाम के धुंधलके साये।
अनकहा,अनूठा दौर,
मन भाये परिंदो का अविरल शोर।

खुशनुमा सा माहौल,
चंचल चितवन सा लगे माखौल।
रात का पसरा सन्नाटा,
जिसने संध्या का गम केवल बांटा।

ये दोनों पहर अजीब,
जैसे कोई विरहन हो देखो गरीब।
पक्षियों का कौतूहल,
करे दिल में पैदा अनूठी सी हलचल।

काश,वो लौट आये,
पुकारते जिसे सब अपने पराये।
सुहागन की लालिमा,
मिटाये न कभी रात्रि की कालिमा।

© Navneet Gill