बेबस!
वीरान थे सब रास्ते,
हम ज़ख्मी कैसे काटते।
अपनो को भी कैसे समझाते,
बस चलते रहे आग बुझाते।।
अंत में तो झूलसना ही था,
दर्द ये भी सहना ही था।
राख ही तो रहेगी,
न जाने वो सब कैसे सहेगी।
अफ़सोस कि मैं इतना बेबस,
ईश्वर मेरे! उसे शक्ति देना बस।।
© J
हम ज़ख्मी कैसे काटते।
अपनो को भी कैसे समझाते,
बस चलते रहे आग बुझाते।।
अंत में तो झूलसना ही था,
दर्द ये भी सहना ही था।
राख ही तो रहेगी,
न जाने वो सब कैसे सहेगी।
अफ़सोस कि मैं इतना बेबस,
ईश्वर मेरे! उसे शक्ति देना बस।।
© J