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बेपरवाह इश्क़
इश्क़ भी यारों करता न जाने कैसे-कैसे कमाल है,
ख़्वाबों-ख़्यालों में गुज़रते लम्हे ये कैसा धमाल है।

ये दिल दीवाना हुआ उन्हें पहली नज़र देखकर ही,
आँखें बँद करूँ वो ही नजर आए ये कैसा जाल है।

बनकर हसीं सा ख़्वाब वो मेरी ज़िन्दगी में आई थी,
जिस्म का नहीं इश्क़ तो रूह से रूह का विसाल है।

प्यार ना हुआ कम चाहें बीत गई ये उम्र दूर रहकर,
दिल में उतरकर वो धड़कन में है ये कैसा जमाल है।

याद आए बेपरवाह इश्क़ की वो मस्तियाँ "पुखराज"
बिछड़े है जबसे उनसे मेरा तो हुआ जीना मुहाल है।

© पुखराज