...

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Manzil
बड़े मुकाम तक पहुँचने की ऐसी बेताबी थी
कि एक पल को सबर नहीं,
कितनी ठोकरें, मुश्किलें और समझौते
करके पहुची हूँ मंज़िल को खबर नहीं...
श्रद्धा✍🏻
© Shraddha_Writes