...

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उस पर मेरा हक है...
कल कल बहती ठंडी हवा सी
सिमट जाती थी,
वो हवा थी
मेरे छत से
गुजर जाती थी..

उबड़ खाबड़ पगडंडियों से बह कर
मंजिल तक अपनी पहुँच जाती थी,
वो नदी थी
मेरे पैरो को छु कर
गुजर जाती थी..

मूसलाधार बूँदों मे बदल कर खुदको
बरस जाती थी,
वो बारिश थी
मेरे जिस्म मे
उतर जाती थी..

हर रोज़ सुबह खिड़की से आके
आँखों पर चमक जाती थी,
वो धूप थी
मुझे जगा कर
निकल जाती थी..

हर रात यादों से नींद मे आकर
बाहों मे सिमट जाती थी,
वो ख्वाब थी
मुझे सुलाकर
बिखर जाती थी..

आज, जब नहीं है वो
तो वो याद है.
उस खूबसूरत याद पर
बस मेरा हक है..