...

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😷🙏 जनमानस में अर्पण 🙏😷
जागृती नही सहमति चाहिए
जनमानस की कृति चाहिए ;
बुद्धि एक सी है सभी की
समझ पाने सी मती चाहिए ।

संक्रमण नहीं अतिक्रमण है
जीवाणु का मुक्त भ्रमण है ;
रोंक सकता है तू , रोंक ले
छूने से ही तो भटकन है ।

दुरता नहीं महज़ दुरियां है
सामाजिक मजबूरियाँ है ;
आवेग के अवरोध का
मात्र यही एक जरिया है ।

पिडा से जो पिडीत हो
ना व्याधी से वह लज्जित हो ;
हेतू प्रयोजन की तत्परता से
वह स्वतः ही खंडीत हो ।

रज नहीं यह रजनी है
सुबह नयीं फिर सजनी है ;
प्रयत्नों की पराकाष्ठा से
नींव नयीं फिर रखनी है ।

✒️ कवी ,
🇮🇳 विजय दागमवार
© 💫अक्षरांच्या ओळी