...

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थक चुकी हूं।
तेरी ख़्वाहिश पुरी करते मैं थक चूकी हुं,
हाँ! मैं तो कबकी मर चुकी हुं।
दफ़न मैनें अपने हर ख़्वाब कर दिए,
तेरे हूकुमों के नीचे दब चुकी हुं।
जब चाहा कूचला जब चाहा मसल दिया,
तेरी दहेज़ की आग में जल चुकी हुं,
ना चाहा मैने फिर भी तूने की ज़बरदस्ती,
कलमुही के ताने से भर...