...

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थक चुकी हूं।
तेरी ख़्वाहिश पुरी करते मैं थक चूकी हुं,
हाँ! मैं तो कबकी मर चुकी हुं।
दफ़न मैनें अपने हर ख़्वाब कर दिए,
तेरे हूकुमों के नीचे दब चुकी हुं।
जब चाहा कूचला जब चाहा मसल दिया,
तेरी दहेज़ की आग में जल चुकी हुं,
ना चाहा मैने फिर भी तूने की ज़बरदस्ती,
कलमुही के ताने से भर चुकी हुं,
दर्द के मेरे तेरा कब वास्ता रहा तेरा,
तेज़ाब डाला तुने उसीसे निखर चुकी हुं,
खून के आँसु रोई इश्क़ तेरा जब ख़तम हुआ,
कपड़ो सी हुं कितनी बार बदल चुकी हुं,
निकलते गलियों में सहम सी जाती हुं,
ऐ ईन्सान मैं तुज़से ड़र चुकी हुं,
अस्तित्व उस माँ का ही मिटा दिया तुने,
माँ से मेहबूबा में तपदिल कर चूकी हुं,
मिटा दिया वज़ूद ही मेरा तुने ऐ ज़ालिम,
अब मैं, मैं कहाँ हुं मैं तो गल चूकी हुं।।।
© Bansari Rathod ' ईश '