...

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धरा के अम्बर सपूतो
उठो धरा के अमर सपूतो
पुनः नया निर्माण करो।

जन-जन के जीवन में फिर से

नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो।

नया प्रात है, नई बात है,

नई किरण है, ज्योति नई।

नई उमंगें, नई तरंगे,
नई आस है, साँस नई।
युग-युग के मुरझे सुमनों में,
नई-नई मुसकान भरो।



डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ

नए स्वरों में गाते हैं।

गुन-गुन-गुन-गुन करते भौंरे
मस्त हुए मँडराते हैं।
नवयुग की नूतन वीणा में
नया राग, नवगान भरो।


कली-कली खिल रही इधर

वह फूल-फूल मुस्काया है।

धरती माँ की आज हो रही
नई सुनहरी काया है।
नूतन मंगलमय ध्वनियों से
गुंजित जग-उद्यान करो।


सरस्वती का पावन मंदिर

यह संपत्ति तुम्हारी है।

तुम में से हर बालक इसका
रक्षक और पुजारी है।
शत-शत दीपक जला ज्ञान के
नवयुग का आह्वान करो।


उठो धरा के अमर सपूतो,

पुनः नया निर्माण करो।