...

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बिखरता हर रोज हूं संवरता हर रोज हूं
बिखरता मै रोज हूं सवरता मै रोज हूं ।
इस वक्त के पहलू में उजड़ता हर रोज हूं।

कांटो भरे इस शहर में मै चलता हर रोज हूं।
जीने के दिखावे में मरता हर रोज हूं।

जाऊ कहां किस जगह हर तरफ वीरान है।
खुद से खुद की जंग झगड़ता मै रोज हूं।

सिलसिला ये चलता है ना रुकता है ना ठहरता है।
इस मन के अंगारो में जलता मै रोज हूं।

कोई हो तो हो जो उस रब को पैगाम सुना ।
आंसुओ के बादल से बरसता हर रोज हूं।

ना चांद ना सूरज बदला ना ।
दिखावे के ज़माने में बदलता हर रोज हूं
© navneet chaubey