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फागुन
डाली डाली कली कली संग अलि झूम रहे
वन उपवन में तो दिख रही प्रीत है ।।
मधु ऋतु चली आई मन में उमंग भारी
खेत खलिहान रंगे रंग भाए पीत हैं ।।
प्रकृति भी गए गीत नाच रहे सभी प्राणी
ऋतु यही सबकी तो बनी मन मीत है।।
ब्रह्म बेला उठ कर शान्त करें चित्त मन
मंत्र मुग्ध करता जो भ्रमर का गीत है ।।
सुभाष सेमल्टी‘विपी’
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