...

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जद्दोजहद...
जद्दोजहद है मानस की आसमाँ पे लकीरे खींचने की
समर शुचि हो चुकी रक्त-रंजित से,खौफ साए फैला रहा
कमत्तर हो रही साँसों की लौ तम रंजिश फैला रहा
जद्दोजहद है अब भी मानस की,जमीं से आसमाँ छुने की

गाफिल हो चुका यह मानस समर के जद्दोजहद से
फिर भी आशा है एक, जीने की जद्दोजहद से
जद्दोजहद मे ही जीना है मरना भी जद्दोजहद से
फ.....त.....ह पाना भी जद्दोजहद से....

© ya waris