...

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प्रेमिका नहीं, सिर्फ़ प्रेम हो...!
हां, तुम प्रेमिका नहीं,"मैं"
तुम्हें प्यार नहीं करता
फिर भी मैं उदास रहता हूं
जब तुम पास नहीं होते
और मैं उस चमकदार, नीले
आकाश से भी ईर्ष्या करता हुं
जिसके नीचे तुम खड़े रहते हो
और जिसके सितारे तुम्हें देख सकते हैं,
मैं तुमसे प्यार नहीं करता हुं
फिर भी तुम्हारी बोलती हुई आंखें
जिसकी नीलिमा में गहराई,
चमक और अभिव्यक्ति है,
मेरी निर्णिमेघ पलकें और जागते
अर्द्ध रात्रि के साथ आकाश में
नाच पड़ती है, और
किसी और के आंखों के लिए
ऐसा नहीं होता...
"न", मुझे मालूम है "मैं"तुम्हे
प्यार नहीं करता हुं, लेकीन
फिर भी, कोई शायद मेरे साफ
दिल पर विश्वास नहीं करेगा
मैं उधर एक टक देखता हूं
जिधर से तुम आया करती है
क्यूंकि, तुम मेरी प्रेमिका नहीं,
तुम मेरा "प्रेम"हो ,
शुद्ध प्रेम, शास्वत प्रेम,
सिर्फ़ प्रेम,और कुछ नहीं....!