"मन का दर्पण देखो..!!!"
वो छल करती है मेरा मन ना माने
वो अबोध पगली दुनियादारी कुछ भी न जाने
देखना है तो ये मत देखो वो इतनी निष्ठुर हुई कैसे...
वो अबोध पगली दुनियादारी कुछ भी न जाने
देखना है तो ये मत देखो वो इतनी निष्ठुर हुई कैसे...