...

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मेरी खुशनुमा ज़िन्दगी।
मेरी खुशनुमा ज़िन्दगी को नज़र लग गई मेरी,
अभी तो अयी थी इस घर में बनकर नई - नवेली।

दिल में खूबसरत सपने बटोर के,
पापा की चिंताओं वाली दीवार तोड़ के।

मम्मी के अरमान लिए,
बिना कोई सवाल किए,
तुम्हारे साथ आ गई।

मेरे भाई की दिल - ए - अज़ीज़ मुस्कान ले के।

तुम्हारे आंगन को अपना समझने लगी थी,
तुम्हारी मां के तानों को भी सहने लगी थी।

भाई तुम्हारा छोटा था, पर मेरी बदन कि खुबसूरती उसको भी भा गई थी,
अब भाभी मां कहां मै तो एक खिलौना हो गई थी।

इस जिस्म को तुम्हारे नाम कर दिया था,
प्यार से पले शरीर पर तो तुमने अपनी मर्दानगी का ज़ख्म भर दिया था।

अगर तुम्हारा गुस्सा उतर गया हो तो माफ़ कर दो इस बेल्ट को अब इसे भी दर्द होने लगा है।