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बचपन से अब तक...
बचपन से अब तक
जब भी चाहा थामना हाथ किसका
नियति को मंजूर हो न सका
रिश्ता दोस्तीवाला हो या प्यार वाला या हो अपनेपन का
सब छूट गया कुछ ही पलों में उम्र का साझा रह गया बाकी
कभी बचपन छूट गया दोस्त ढूंढते ढूंढते
क्योंकि मेरे चेहरे के मासूमियत से ज्यादा
शरीर के तकलीफे दिखे उन्हें
गलती मेरी नहीं पर थी शरीर की बीमारी का
पर बच्चे थे उनसे क्या उम्मीद करूं बड़प्पन की
बड़ी...