...

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कलम
हमने तो कलम तोड़ दी थी,
स्याही भी सूख चुकी थी,
पर भला हो नसीब का,
जिसने आंखें नम की |
अब लिखते हैं अपने को पहचान कर,
न हैरत में न किसी को परेशान कर,
जिंदगी शायद ऐसे ही कट जाए,
कलम के सहारे ही मन बहल जाए |
© देवेश शुक्ला