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मेरी शान तिरंगा है
शीर्षक-मेरी शान तिरंगा है

पिता कौन क्यों है लेटा ?
ओढ़े कफ़न तिरंगा,
कंधों पर ले चार खड़े हैं
आंख से बहती गंगा,

बेटा बुला रहा है उनको
करुणा से रो रोकर,
गिरी धरा पर मां शिथिल
सिंदूर अश्रु से धोकर,

आसमान में देख रही
पलकें बिना झुकाए,
मानों कोई बुला रहा
या खुद ही जी न पाए

किसके बिनु वह तड़प रही
जैसे जल बिनु शफरी
आग लगी हो मन जग में
जलती जीवन सगरी,

बेटा तुम नादान अभी
तुमको क्या समझाऊं?
हठ कर बैठा तात अगर
आ तुझको बतलाऊं,

कर लो शत् शत् नमन आज
उस धरती माता को
जिसने कर दिया अमर है
जीवन के गाथा को,

यह बलिदानी देशभक्त
ध्वज नभ में फहराया
सना लहू में लसफस तन
जन गण मन था गाया,

याद किया जब माता को
आंसू झर झर आया
ह्रदय की असहन वेदना
खुद को सह न पाया

पुत्र संगनी सजग सामने
ममता मन भर आया
सोंचा गले लगा ही ले
पर थी काली छाया,


पर अचानक स्मरण आया
माता मुझे बुलाती
तीन रंगों के आंचल से
मुझको हवा खिलाती,

धीरे से हो गई बंद कब
थकी थकी सी आंखें
किया देश को नत मस्तक
बांध तिरंगा माथे,

सबसे पहले देश बड़ा
है मेरा शान तिरंगा
लहू बहेगी सीने में
बनकर यमुना गंगा,

मान तिरंगा शान तिरंगा
भारत भाग्य विधाता
यदि मर जाऊं आज अभी
तो ध्वज को कफ़न बनाता


तीन रंग से बना तिरंगा
राष्ट्रीय पहचान है
शान तिरंगा मान तिरंगा
वीरगति बलिदान है,


रचनाकार-रामबृक्ष, अम्बेडकरनगर
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