संहार
किसी की लाडली थी वो,
इक नन्ही सी कली थी वो,
खिलने से पहले ही,
उसे नोच लिया,
जाने कैसा काल है,
या कौन सा युग है ये,
जो भगवान को पा कर अकेला,
किसी शैतान ने दबोच लिया,
नौ दिन पूजेंगे दुर्गा को,
फिर नदियों में बहाएंगे,
पूजन में पूजेंगे कन्या को,
रक्षा को भक्त न आएंगे,
पोंछ कर आंसू अपने,
अवतार काली का धरना होगा,
नज़र बुरी रखे जो तुझ पर,
उसे तेरे हाथों ही मरना होगा,
उठा हाथ में खड्ग खप्पर,
संहार पापी का करना होगा।
- राजेश वर्मा
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इक नन्ही सी कली थी वो,
खिलने से पहले ही,
उसे नोच लिया,
जाने कैसा काल है,
या कौन सा युग है ये,
जो भगवान को पा कर अकेला,
किसी शैतान ने दबोच लिया,
नौ दिन पूजेंगे दुर्गा को,
फिर नदियों में बहाएंगे,
पूजन में पूजेंगे कन्या को,
रक्षा को भक्त न आएंगे,
पोंछ कर आंसू अपने,
अवतार काली का धरना होगा,
नज़र बुरी रखे जो तुझ पर,
उसे तेरे हाथों ही मरना होगा,
उठा हाथ में खड्ग खप्पर,
संहार पापी का करना होगा।
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