प्रेम की ख़ोज में, हम से “ मैं ” हो गई...
प्रेम करना एक बात है और निभाना दूसरी,
दोनों ही अलग हैं एक दूसरे से,बिल्कुल अलग.
लोग आते हैं प्रेम सिखाकर चले जाते हैं,
इसी बीच कभी-२ मर जाते हैं जज़्बात..
लेकिन प्रेम कभी नहीं मरता,तुम्हें जिन्दा रखता है वो,
वो लोग ये तो बता देते हैं कि प्रेम कैसे होता है
और ये भी समझा जाते हैं कि प्रेम क्या है,
लेकिन प्रेम को निभाना नहीं बताते..
शायद...
दोनों ही अलग हैं एक दूसरे से,बिल्कुल अलग.
लोग आते हैं प्रेम सिखाकर चले जाते हैं,
इसी बीच कभी-२ मर जाते हैं जज़्बात..
लेकिन प्रेम कभी नहीं मरता,तुम्हें जिन्दा रखता है वो,
वो लोग ये तो बता देते हैं कि प्रेम कैसे होता है
और ये भी समझा जाते हैं कि प्रेम क्या है,
लेकिन प्रेम को निभाना नहीं बताते..
शायद...