...

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रे मानुष....
रे मानुष तू तो है मिट्टी का इन्सान
कण -कण में तेरे हैं भगवान
कुछ भी हाथ नहीं है तेरे
क्यो फिर ऐसे है मुख तू फेरे
नैया कैसे लगेगी पार
जीवन का तो यही है सार
अब दूर कर दे अपना अहंकार
दाता झोली भरेंगे अपरमपार
कर्मठ बन मिला हाथों से हाथ
चल रे खेवैया कर ले अपना पथ ध्यान
© Diल की पाti (Deepa Rani)🖋..