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No end of knowledge
ज्ञान का कोई अन्त नहीं, लेकिन फिर भी है।

*मन बुद्धि मनुष्य के पास ऐसे यंत्र हैं जिनकी उपयोगिता की गुणवत्ता लगातार बढ़ती ही जाती है। मन बुद्धि के द्वारा निरन्तर नया नया चिंतन प्रगट होता ही रहता है। अतीत में हजारों वर्षों से ऐसा होता ही रहा है। सिर्फ मन बुद्धि को नए नए चिंतन को प्रगट होने की सुविधा मिलनी चाहिए। मन बुद्धि को प्रगट होने की वह सुविधा मिलने का हमारा भावार्थ है कि नई नई परिस्थिति, समय स्थान, भिन्न भिन्न लोगों का मिलना तथा मनुष्य की स्वयं की स्मृतियां और श्रुतियां का मानस पटल पर उभर कर आना। ज्ञान के प्रकार अनेक हैं। मानसिक अवधारणाएं वैरायटी है। ज्ञान का संबंध विचार से है। अभिव्यक्ति का भी सम्बंध विचार से है। विचार का सम्बंध संसार से है। संसार का सम्बंध विचार से है। जब तक संसार है तब तक विचार की प्रक्रिया रहेगी ही। जब तक विचार है तब तक संसार रहेगा ही। विचार का नियंत्रण योग के द्वारा ही हो सकता है। विचार को योग के द्वारा ही विसर्जित किया जा सकता है। दूसरा कोई भी उपाय नहीं है। हां, वह अलग बात है कि जिन आत्माओं के मन बुद्धि का जब एक सैचुरेटेड प्वाइंट (सोखने की आखिरी क्षमता) आ जाता है, या मनमनाभव (योग) की एक अवस्था आ जाती है, तब केवल उन आत्माओं के लिए ही ज्ञान का अंतिम बिंदु आ चुका होता है। वे ज्ञान की अभिव्यक्ति नहीं करती। सैचुरेटेड प्वाइंट वाली आत्माओं की कुछ बोलने या कहने इच्छा नहीं रहती। योग की एक निश्चित अवस्था प्राप्त कर लेने वाली आत्माएं मौन साक्षी हो जाती हैं। अन्यथा तो चिंतनशील आत्माओं के मन बुद्धि से ज्ञान रूपी पत्ते निकलते ही रहते हैं।