...

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आख़िर तुम ही क्यों?
आख़िर तुम ही क्यों?

सुबह की चाय लेकर,
शाम की अंगड़ाई में हो तुम;
मंदिर की घंटी से लेकर,
महोल्ले की लड़ाई में हो तुम;
आज गमले में जो जूही खिली है,
उसकी हर कली में हो तुम ;
खेतों की हर फसल, हर एक फली हो तुम;

खान बाबा के इत्र से लेकर ,
मेरे मोहयुक्त मित्र में हो तुम;
सहेलियाँ पूछती हैं हाल तो
तुम्हारे दिए झुमके छनका देती हूं ;
अब हां या...